बर्फ पिघलने की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंची, पांच साल में 10 फीसद सिकुड़े स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर


आखिर किस तरह जलवायु परिवर्तन से निपटा जाए, इस मुद्दे पर विश्‍वभर में चिंतन चल रहा है। जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक चिंता के बीच एक अध्ययन में कहा गया है कि पिछले पांच साल में स्विट्जरलैंड के ग्लेशियर दस फीसद सिकुड़ गए। बीती एक सदी में ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने की यह सर्वाधिक वृद्धि दर बताई जा रही है।


स्विस एकेडमी ऑफ साइंसेज के क्रायोस्फेरिक कमीशन की ओर से कराए गए ग्लेशियरों के सालाना अध्ययन के अनुसार, 20 स्विस ग्लेशियरों की मापजोख से पता चला कि इस साल बर्फ पिघलने की दर रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। कमीशन का कहना है कि इस साल अप्रैल और मई में इन ग्लेशियरों में बर्फ की मात्रा औसत से 20 से 40 फीसद ज्यादा थी। लेकिन जून के अंतिम दो हफ्तों और जुलाई में पड़ी भीषण गर्मी से ग्लेशियरों की बर्फ बड़ी तेजी से पिघली।


ज्यूरिख स्थित ईटीएच टेक्निकल यूनिवर्सिटी के एक हालिया अध्ययन में आगाह किया गया है कि अगर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर लगाम नहीं लगाई गई, तो इस सदी के अंत तक आल्प्स पर्वतमाला के करीब चार हजार ग्लेशियर में 90 फीसद से ज्यादा गायब हो जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत में मोदी सरकार ने भी कई कठोर कदम उठाएं हैं। हाल ही में सिंगल यूज प्‍लास्टिक के इस्‍तेमाल न करने को लेकर भी अभियान शुरू हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली के दौरान भी कहा था कि भारत ने पर्यावरण की रक्षा के लिए काम शुरू कर दिया है और अब अन्‍य देशों को भी जल्‍द कदम उठाने चाहिए।


गौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वैश्विक चुनौतियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र की पहल पर गठित अंतरसरकारी समूह की रिपोर्ट में समुद्र से जुड़े नए खतरों को लेकर चिंता जताई गई थी। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप न सिर्फ समुद्रों के जलस्तर में वृद्धि होगी, बल्कि समुद्री तापमान और पानी के अम्लीकरण में इजाफे का खतरा भी बढ़ेगा। इससे समुद्री जीवों के वजूद पर भी संकट मंडराने लगेगा। ऐसे में अगर समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।


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